Sanskrit Essay On Anushaasn(अनुशासन संस्कृत निबंध)

अनुशासन

शासनमनु अनुशासनम् अर्थात शासनेन निर्मितानि नियमनि पालयन्तः लोकाः अनुशासिताः कथ्यते । अनुशासनभावे समाजे उच्छृंखलता आगच्छति । सर्वे स्वैराचरं कुर्वन्तः न कथमपि आत्मोन्नतिम् देशोन्नतिञ्च कर्तुम् समर्थाः । पारिवारिकी व्यवस्था नक्ष्यति । विद्यार्थिनः उद्दण्डाः भविष्यन्ति, वणिजः, अधिकं लाभमेष्यन्ति अतएवानुशासनम् देशस्य समाजस्य, मनुष्याणां छात्राणाञ्च कृते परमावश्यकमस्ति । अस्माकं व्यवहारेषु अपि अनुशासनम् दृश्यते । छात्राणाम् कृते विद्यालय एवानुशासनशिक्षा-केन्द्रमस्ति । अस्मिन्नेव काले छात्राणाम् मनःसु यः प्रभावः सम्पद्यते सः स्थायी भवति । बाल्ये अनुशासनहीनाः जनाः प्राप्ते वयसि अनुशासिता भविष्यन्तीति दुराशामात्रम् ।

हिन्दी अनुवाद :
शासन संवंधी नियमों का पालन करना अनुशासन कहलाता है । अनुशासन के अभाव में समाज में उच्छृंखलता आ जाती है । सभी लोग अपने-अपने विचार करने लगते है, और इसमें लोग और देश उन्नति करने में सक्षम नहीं हो पाते है । परिवार की व्यवस्था नष्ट हो जाती है । विद्यार्थी उद्दंड हो जाएगें, व्यापारी अधिक लाभ लेंगे, अतः छात्र, व्यक्ति, समाज और देश के लिए अनुशासन परम आवश्यक है । हमलोगों के व्यवहार में ही अनुशासन देखा जाता है । छात्रों के लिए विद्यालय ही अनुशासन का केन्द्र है । इस समय छात्रों के मन में जिस प्रकार का प्रभाव रहता है वही स्थायी हो जाता है । बचपन के अनुशासन हीन व्यक्तियों में उम्र बढ़ने पर भी अनुशासन का अभाव रहेगा ।

Also Read:
Essay on Anushaasan
Essay on Bharatvarsh
Essay on Diwali/Deepawali
Essay on Importance of Sanskrit Language
Essay on Satsangati
Essay on Satyamev Jayate
Essay on Shram(Labour)

Share
error: Content is protected !!